Political Science Class 11 Chapter 1 Notes in Hindi – हमें सविंधान की आवश्यकता क्यों है?
प्रस्तावना:
किसी भी देश का संविधान उस देश के नागरिकों के लिए सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है। यह न केवल देश के शासन का ढांचा तैयार करता है, बल्कि यह यह भी सुनिश्चित करता है कि देश के नागरिकों को उनके अधिकार प्राप्त हों और वे समानता, स्वतंत्रता, और न्याय का अनुभव कर सकें। संविधान वह आधारशिला है जो एक देश के लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करता है। भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में संविधान का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
संविधान क्या है?
संविधान एक ऐसा दस्तावेज है जिसमें किसी देश के शासन का मूल ढांचा, कार्य प्रणाली, नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य, तथा सरकार की शक्तियाँ एवं उनके सीमाएं निर्धारित होती हैं। यह नागरिकों और सरकार के बीच एक सामाजिक अनुबंध (Social Contract) की तरह कार्य करता है।
हमें संविधान की आवश्यकता क्यों है?
- देश के शासन की रूपरेखा प्रदान करना
संविधान यह तय करता है कि देश में सरकार किस प्रकार बनेगी, कौन किस पद पर कार्य करेगा, किसके पास कौन-सी शक्तियाँ होंगी, और उनके कार्यों की सीमाएं क्या होंगी।
उदाहरण: भारत में कार्यपालिका (Executive), विधायिका (Legislature), और न्यायपालिका (Judiciary) के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन संविधान के अनुसार है।
- नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा
संविधान नागरिकों को मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) प्रदान करता है, जैसे – समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता, सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार आदि। ये अधिकार नागरिकों को शोषण से बचाते हैं और उन्हें एक गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर प्रदान करते हैं।
उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो वह न्यायपालिका में जाकर अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है।
- सरकार की शक्तियों पर नियंत्रण
संविधान सरकार को असीमित शक्ति नहीं देता। यह सुनिश्चित करता है कि सरकार नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन न करे और अपने अधिकारों का दुरुपयोग न करे।
उदाहरण: न्यायपालिका सरकार के किसी भी गलत निर्णय की समीक्षा कर सकती है।
- न्याय और समानता की स्थापना
संविधान देश में सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करने की गारंटी देता है। जाति, धर्म, लिंग, भाषा, या जन्म स्थान के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव संविधान के अनुसार अवैध है।
उदाहरण: समान नागरिक संहिता और आरक्षण नीति संविधान के न्याय और समानता सिद्धांतों पर आधारित हैं।
- राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखना
भारत जैसे विशाल और विविध देश में संविधान ही वह माध्यम है जो सभी नागरिकों को एक सूत्र में बांधता है। यह विभिन्न जातियों, धर्मों, भाषाओं, और संस्कृतियों को सम्मान देकर एकजुट करता है।
उदाहरण: भारत के संविधान ने ‘अनेकता में एकता’ का आदर्श स्थापित किया है।
- लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम रखना
संविधान यह सुनिश्चित करता है कि देश में लोकतांत्रिक प्रणाली बनी रहे, जिसमें लोगों की सर्वोच्चता हो, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हों, और सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी रहे।
उदाहरण: भारत में प्रत्येक पांच वर्षों में चुनाव कराना संविधान की ही देन है।
- संघीय व्यवस्था का निर्धारण
भारत का संविधान संघीय है जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है। इससे देश के शासन में संतुलन बना रहता है।
उदाहरण: केंद्र, राज्य, और समवर्ती सूचियों का विभाजन संविधान में किया गया है।
- सामाजिक परिवर्तन का साधन
संविधान केवल स्थिरता का ही नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का भी माध्यम है। यह समाज में व्याप्त कुरीतियों और असमानताओं को दूर करने का प्रयास करता है।
उदाहरण: अस्पृश्यता का उन्मूलन, महिला सशक्तिकरण, और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण संविधान द्वारा ही संभव हुआ है।
- कानूनी सर्वोच्चता की स्थापना
संविधान यह सुनिश्चित करता है कि देश में कानून सर्वोपरि होगा। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, संविधान और कानून से ऊपर नहीं है।
उदाहरण: भारत में ‘Rule of Law’ का सिद्धांत संविधान में निहित है।
- अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और मूल्यों का सम्मान
संविधान भारत को एक ऐसा देश बनाने का मार्गदर्शन करता है जो अंतर्राष्ट्रीय शांति और सहयोग का समर्थन करता है।
उदाहरण: भारत के संविधान का उद्देशिका (Preamble) ‘विश्व बंधुत्व’ को भी महत्व देती है।
निष्कर्ष:
संविधान किसी देश का प्राण है। यह केवल कानूनों का संग्रह नहीं, बल्कि नागरिकों के अधिकारों की ढाल, सरकार की शक्तियों की सीमा, और देश के लोकतांत्रिक आदर्शों की रक्षा करने वाला एक मजबूत दस्तावेज है। भारत जैसे विशाल, बहु-धार्मिक, बहु-भाषी देश में संविधान की आवश्यकता और भी अधिक है। यह देश के सभी नागरिकों को एक साझा पहचान, समान अधिकार, और न्याय की गारंटी देता है। संविधान के बिना एक संगठित, न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती।