सत्ता के समकालीन केंद्र || चीन का एक आर्थिक शक्ति के रूप में उदय ||

सत्ता के समकालीन केंद्र || चीन का एक आर्थिक शक्ति के रूप में उदय ||

चीन का एक आर्थिक शक्ति के रूप में उदय (The Rise of China as an Economic Power)

भूमिका:

20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और 21वीं शताब्दी की शुरुआत में चीन ने विश्व मंच पर तेजी से एक उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाई है। चीन की यह प्रगति न केवल उसके आंतरिक सुधारों का परिणाम है बल्कि वैश्वीकरण, प्रौद्योगिकी विकास और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में उसकी सशक्त भागीदारी का भी नतीजा है।

चीन के आर्थिक विकास का इतिहास:

  1. 1949 के बाद की स्थिति:
  • 1949 में माओ त्से तुंग के नेतृत्व में चीन में साम्यवादी क्रांति हुई और चीन में जनवादी गणराज्य की स्थापना हुई।
  • प्रारंभिक वर्षों में चीन की अर्थव्यवस्था कृषि-प्रधान और केंद्रीकृत योजना पर आधारित थी।
  • सरकार ने भूमि सुधार, सामूहिक खेती, और भारी उद्योगों के विकास पर बल दिया।
  1. महान छलांग” (1958-1961):
  • माओ त्से तुंग ने चीन को शीघ्र औद्योगीकृत करने के उद्देश्य से “महान छलांग” (Great Leap Forward) कार्यक्रम चलाया।
  • यह कार्यक्रम असफल रहा और इसके कारण भीषण अकाल पड़ा जिससे करोड़ों लोग मारे गए।
  1. 1978 के बाद आर्थिक सुधार:
  • 1978 में देंग शियाओपिंग के नेतृत्व में चीन ने “खुली अर्थव्यवस्था” (Open Door Policy) और आर्थिक सुधारों की शुरुआत की।
  • बाजार आधारित सुधारों को अपनाया गया और विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खोले गए।
  • विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) की स्थापना की गई।

चीन के आर्थिक विकास के प्रमुख कारण:

  1. आर्थिक उदारीकरण:
  • देंग शियाओपिंग के नेतृत्व में चीन ने सोवियत संघ की तरह पूरी तरह से केंद्रीय नियंत्रण छोड़कर धीरे-धीरे बाजार-आधारित अर्थव्यवस्था अपनाई।
  • निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया गया।
  1. विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ):
  • शेनझेन जैसे शहरों में SEZ की स्थापना कर विदेशी कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित किया गया।
  • SEZ ने चीन को ‘विश्व का कारखाना’ बना दिया।
  1. विदेशी निवेश और वैश्वीकरण:
  • चीन ने FDI (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश) को प्रोत्साहित किया।
  • वैश्विक कंपनियों ने चीन में उत्पादन इकाइयाँ स्थापित कीं।
  1. बड़ी जनसंख्या और सस्ते श्रमिक:
  • विशाल जनसंख्या के कारण सस्ते श्रमिक आसानी से उपलब्ध हुए, जिससे चीन में उत्पादन लागत कम रही।
  • यही कारण है कि चीन वैश्विक उत्पादन का केंद्र बन गया।
  1. मजबूत बुनियादी ढांचा:
  • चीन ने सड़कों, बंदरगाहों, रेलवे, ऊर्जा और तकनीकी अवसंरचना में भारी निवेश किया।
  • उच्च गुणवत्ता वाली सुविधाओं ने उद्योगों के विकास को बल दिया।
  1. शिक्षा और तकनीकी विकास:
  • चीन ने तकनीकी शिक्षा और शोध पर बल दिया।
  • इससे चीन आईटी, इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में तेजी से विकसित हुआ।

चीन के आर्थिक विकास के परिणाम:

  1. विश्व का दूसरा सबसे बड़ा अर्थव्यवस्था:
  • आज चीन अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
  • चीन का GDP लगभग 18 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच चुका है (2024 के अनुमानानुसार)।
  1. उद्योग और निर्यात में अग्रणी:
  • चीन आज विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक देश है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा, मशीनरी, स्टील आदि में चीन का वर्चस्व है।
  1. विश्व का कारखाना”:
  • चीन को “विश्व का कारखाना” कहा जाता है क्योंकि यहाँ से लगभग हर प्रकार की वस्तुएँ विश्व के हर कोने में पहुँचती हैं।
  1. बढ़ती वैश्विक राजनीतिक शक्ति:
  • आर्थिक शक्ति के साथ-साथ चीन वैश्विक कूटनीति, रक्षा और तकनीकी शक्ति के रूप में भी उभरा है।
  1. बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI):
  • चीन ने BRI के माध्यम से एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ने वाली परियोजनाओं में भारी निवेश किया है।
  • इसका उद्देश्य वैश्विक व्यापार में चीन का प्रभुत्व बढ़ाना है।

चीन के आर्थिक विकास की चुनौतियाँ:

  1. आंतरिक सामाजिक असमानता:
  • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आय और जीवन स्तर में भारी अंतर है।
  • दक्षिण और तटीय इलाकों में तेजी से विकास हुआ है जबकि आंतरिक इलाकों में पिछड़ापन है।
  1. पर्यावरणीय संकट:
  • तीव्र औद्योगीकरण के कारण चीन में प्रदूषण, जल संकट, और जलवायु परिवर्तन की समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं।
  1. अमेरिका और अन्य देशों से व्यापार युद्ध:
  • चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध से आर्थिक तनाव पैदा हुआ है।
  • कई देश चीन की व्यापार नीतियों को अनुचित मानते हैं।
  1. अधिक निर्भरता निर्यात पर:
  • चीन की अर्थव्यवस्था अभी भी निर्यात-आधारित है, जो वैश्विक आर्थिक मंदी के समय जोखिम में पड़ सकती है।

चीन की वैश्विक आर्थिक भूमिका:

  1. BRICS और SCO में सक्रिय भूमिका:
  • चीन BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में एक मजबूत नेता है।
  1. एशियाई देशों में निवेश:
  • चीन एशियाई, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश कर रहा है।
  1. युआन का अंतरराष्ट्रीयकरण:
  • चीन अपनी मुद्रा युआन को डॉलर के विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा है।

निष्कर्ष:

चीन का आर्थिक शक्ति के रूप में उदय 20वीं और 21वीं शताब्दी की सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक घटनाओं में से एक है। चीन ने अपने आंतरिक सुधारों, वैश्वीकरण में भागीदारी और रणनीतिक निवेश के माध्यम से यह स्थान प्राप्त किया है। हालाँकि, चीन के सामने सामाजिक, पर्यावरणीय और राजनीतिक चुनौतियाँ भी हैं, जिन्हें यदि सही तरीके से प्रबंधित किया जाए तो चीन आने वाले समय में और भी अधिक प्रभावशाली वैश्विक शक्ति बन सकता है।

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