श्रीलंका में जातीय संघर्ष और लोकतंत्र
प्रस्तावना:
श्रीलंका एक द्वीप राष्ट्र है जहाँ मुख्य रूप से दो जातीय समूह रहते हैं — सिंहली और तमिल। इन दोनों समुदायों के बीच वर्षों से संघर्ष चला आ रहा है, जो श्रीलंका के लोकतांत्रिक ढांचे और सामाजिक एकता को चुनौती देता रहा है।
श्रीलंका का जातीय और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य
- श्रीलंका की आबादी का बड़ा हिस्सा सिंहली (लगभग 74%) है, जो मुख्य रूप से बौद्ध धर्म का पालन करते हैं।
- दूसरा बड़ा समूह है तमिल (लगभग 18%), जो मुख्यतः हिंदू धर्म से जुड़े हैं।
- इसके अलावा कुछ मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय भी हैं।
- भाषा का मुद्दा भी संघर्ष का एक बड़ा कारण रहा है — सिंहली भाषा मुख्य भाषा मानी जाती है जबकि तमिल भाषा को सीमित महत्व दिया गया।
जातीय संघर्ष के कारण
- भाषाई असमानता: 1956 में ‘Official Language Act’ (Sinhala Only Act) के तहत सिंहली को ही सरकारी भाषा घोषित कर दिया गया, जिससे तमिलों में नाराजगी हुई।
- राजनीतिक व सामाजिक भेदभाव: तमिलों को शिक्षा, सरकारी नौकरियों, और भूमि अधिकारों में भेदभाव का सामना करना पड़ा।
- आर्थिक असमानता: तमिलों को आर्थिक रूप से कमजोर करने के प्रयास हुए, जिससे उनकी स्थिति कमजोर हुई।
- सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान की लड़ाई: तमिल समुदाय ने अपनी सांस्कृतिक पहचान और धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष किया।
संघर्ष के मुख्य चरण
- 1950-1970 के दशक: तमिलों ने अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन और आंदोलन शुरू किए।
- 1980 के दशक: संघर्ष चरम पर पहुंचा, तमिल राष्ट्रवाद ने उग्र रूप ले लिया। तमिल टाइगर (LTTE) जैसे सशस्त्र संगठन बने।
- गृह युद्ध: श्रीलंका में लगभग तीन दशक तक हिंसक गृह युद्ध चला जिसमें हजारों लोग मरे और देश की एकता को खतरा पहुंचा।
लोकतंत्र पर प्रभाव
- जातीय संघर्ष ने श्रीलंका के लोकतंत्र को कमजोर किया:
- लोकतांत्रिक संस्थान प्रभावित हुए।
- मानवाधिकारों का उल्लंघन बढ़ा।
- सरकार ने सैन्य बल का सहारा लिया।
- अल्पसंख्यकों की राजनीतिक भागीदारी कम हुई।
संघर्ष के समाधान के प्रयास
- शांतिपूर्ण वार्ता: समय-समय पर दोनों पक्षों के बीच वार्ता हुई लेकिन स्थायी समाधान नहीं निकला।
- शांतिस्थापना प्रयास: भारत और अन्य देशों ने मध्यस्थता की कोशिश की।
- सैन्य अभियान: सरकार ने सैन्य अभियान चलाकर LTTE का नाश किया।
- संविधान सुधार: अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए कुछ संवैधानिक सुधार भी हुए।
वर्तमान स्थिति और निष्कर्ष
- अब स्थिति कुछ हद तक स्थिर है लेकिन जातीय सद्भाव पूरी तरह बहाल नहीं हुआ।
- श्रीलंका के लिए यह जरूरी है कि वह समानता, अधिकारों की रक्षा, और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करे।
- जातीय संघर्ष को खत्म करने के लिए सामाजिक समरसता और विकास पर ध्यान देना होगा।
संक्षेप में:
श्रीलंका का जातीय संघर्ष उसकी सामाजिक-राजनीतिक संरचना पर गहरा प्रभाव डालता रहा है। भाषा, पहचान, और अधिकारों के मुद्दे संघर्ष के मूल कारण हैं। लोकतंत्र के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन समय के साथ संवाद और समझौते के प्रयास भी हुए हैं।