भारत-पाकिस्तान संघर्ष || समकालीन दक्षिण एशिया
भारत-पाकिस्तान संघर्ष का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ब्रिटिश भारत का विभाजन 1947 में हुआ था, जिसका उद्देश्य था हिंदुओं और मुसलमानों के लिए अलग-अलग देश बनाना। मुस्लिम लीग के नेतृत्व में पाकिस्तान की मांग धार्मिक आधार पर हुई थी। विभाजन के दौरान पंजाब और बंगाल जैसे क्षेत्र भी विभाजित हुए, जिससे भारी जनसंख्या विस्थापन और सांप्रदायिक दंगे हुए।
विभाजन के बाद, जम्मू-कश्मीर की स्थिति भारत-पाकिस्तान संघर्ष की सबसे बड़ी जड़ बन गई। यह क्षेत्र हिंदुओं, मुसलमानों और बौद्धों का मिश्रित प्रदेश था, जिसका शासक हिंदू था लेकिन अधिकांश जनसंख्या मुस्लिम थी। कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने भारत के साथ विलय का फैसला किया, जिसके बाद पाकिस्तान ने उसे कब्जा करने की कोशिश की, जिससे 1947 में पहला भारत-पाकिस्तान युद्ध छिड़ गया।
भारत-पाकिस्तान संघर्ष: मुख्य बिंदु (वर्तमान संदर्भ में)
कश्मीर विवाद
भारत और पाकिस्तान के बीच सबसे बड़ा विवाद कश्मीर को लेकर है। 1947 के बाद से अब तक दोनों देशों के बीच कश्मीर को लेकर तीन बड़े युद्ध (1947, 1965, 1999) और अनेक छोटे संघर्ष हो चुके हैं। पाकिस्तान, जम्मू-कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र मानता है जबकि भारत इसे अपना अभिन्न अंग मानता है।
सीमा पर संघर्ष और आतंकवाद
वर्तमान समय में भी सीमा पार आतंकवाद भारत-पाकिस्तान संघर्ष का मुख्य कारण है। पाकिस्तान की ओर से आतंकवादी संगठनों को समर्थन देने का भारत बार-बार आरोप लगाता है। 2016 में उरी हमला और 2019 में पुलवामा हमला इसके उदाहरण हैं, जिनके बाद भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक जैसे कड़े कदम उठाए।
सियाचिन ग्लेशियर विवाद
सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र है, जहां भारत और पाकिस्तान दोनों की सेनाएँ तैनात हैं। यह विवाद 1984 से चला आ रहा है, जब भारत ने इस क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित किया। आज भी यहां सैन्य टकराव की स्थिति बनी रहती है।
जल विवाद
भारत और पाकिस्तान के बीच जल वितरण को लेकर भी विवाद है। 1960 में सिंधु जल संधि के तहत सिंधु नदी प्रणाली का जल वितरण तय किया गया था, लेकिन पाकिस्तान अक्सर भारत पर संधि उल्लंघन के आरोप लगाता है। भारत भी अपने अधिकार क्षेत्र में जल परियोजनाएं चलाता है, जिससे तनाव बढ़ता है।
सांस्कृतिक और कूटनीतिक तनाव
दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध अक्सर कमजोर रहते हैं। समय-समय पर दोनों देश एक-दूसरे के उच्चायुक्तों को निष्कासित करते हैं, व्यापारिक संबंध निलंबित कर देते हैं, और खेल प्रतियोगिताएँ रद्द कर देते हैं। सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी सीमित हो गया है।
LOC और संघर्ष विराम उल्लंघन
नियंत्रण रेखा (LOC) पर लगातार संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाएं होती रहती हैं। गोलाबारी और आम नागरिकों की मृत्यु भारत-पाक संबंधों को और बिगाड़ती हैं।
अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप और प्रयास
संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक शक्तियां दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने के प्रयास करती रही हैं, लेकिन अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकला है। भारत पाकिस्तान के साथ किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता।
संघर्ष के अन्य कारण
भारत-पाकिस्तान संघर्ष केवल कश्मीर तक सीमित नहीं है। इसके कई सामाजिक, राजनीतिक, और धार्मिक कारण हैं:
- धार्मिक विभाजन: भारत का हिन्दू बहुल देश और पाकिस्तान का मुस्लिम बहुल देश होने के कारण सांप्रदायिक तनाव गहरा है।
- राष्ट्रीयता और पहचान: दोनों देशों की राष्ट्रीय पहचान धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर निर्मित है, जो एक-दूसरे को अस्वीकार करता है।
- आतंकवाद और विद्रोह: पाकिस्तान के कुछ हिस्सों से कश्मीर में आतंकवादी और विद्रोही समूहों को सहायता मिलने की खबरें संघर्ष को बढ़ावा देती हैं।
- राजनीतिक हित: दोनों देशों के आंतरिक राजनीति में भी यह संघर्ष एक अहम मुद्दा होता है, जिससे नेता राजनीतिक समर्थन जुटाते हैं।
भारत-पाकिस्तान संघर्ष के वर्तमान परिणाम: मुख्य बिंदु
सीमाओं पर निरंतर तनाव (LOC पर संघर्ष)
- भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (LOC) पर अक्सर गोलीबारी और सीज़फायर उल्लंघन होते रहते हैं।
- सीमावर्ती क्षेत्रों में नागरिकों की सुरक्षा हमेशा खतरे में बनी रहती है।
राजनीतिक संबंधों में कटुता
- दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय वार्ताएँ रुक-रुक कर होती हैं लेकिन स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है।
- पाकिस्तान के साथ भारत ने व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंधों में कई बार रोक लगाई है।
आतंकवाद की चुनौती
- भारत का आरोप है कि पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों को समर्थन देता है, जो भारत में आतंकी हमलों को अंजाम देते हैं (जैसे – 26/11 मुंबई हमला, उरी हमला, पुलवामा हमला आदि)।
- इसके कारण भारत ने पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक संबंधों में कई बार कटौती की है।
सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक
- 2016 में उरी हमले के बाद भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकवादियों के ठिकानों को नष्ट किया।
- 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक कर आतंकवादी अड्डों को निशाना बनाया।
आर्थिक प्रतिबंध और व्यापारिक संबंधों में गिरावट
- भारत ने पाकिस्तान से व्यापारिक संबंध लगभग समाप्त कर दिए हैं।
- पाकिस्तान को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ (MFN) का दर्जा वापस ले लिया गया।
जनता और मीडिया पर प्रभाव
- दोनों देशों की मीडिया में एक-दूसरे के खिलाफ नकारात्मक खबरें आम हैं।
- युद्ध और संघर्ष का माहौल दोनों देशों की आम जनता में भय और नफरत का कारण बनता है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव और वैश्विक भूमिका
- भारत को विश्व समुदाय का बड़ा समर्थन प्राप्त है, विशेषकर आतंकवाद के खिलाफ।
- पाकिस्तान पर आतंकवाद को लेकर वैश्विक दबाव बढ़ा है, लेकिन चीन और कुछ इस्लामिक देशों का समर्थन पाकिस्तान को मिलता रहता है।
कश्मीर मुद्दा अब भी जटिल
- भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया, जिसे पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विरोध किया।
- पाकिस्तान इसे अंतरराष्ट्रीय विवाद बनाना चाहता है, जबकि भारत इसे आंतरिक मामला मानता है।
समाधान के प्रयास
संयुक्त राष्ट्र हस्तक्षेप:
कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र ने 1948 में युद्धविराम लागू करवाया और जनमत संग्रह की सिफारिश की, जो आज तक नहीं हो सका।
ताशकंद समझौता (1966):
1965 युद्ध के बाद सोवियत संघ की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम और शांति बहाली के लिए समझौता हुआ।
शिमला समझौता (1972):
1971 युद्ध के बाद दोनों देशों ने कश्मीर मुद्दे को आपसी बातचीत से हल करने पर सहमति जताई।
अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर यात्रा (1999):
भारत के प्रधानमंत्री ने विश्वास बहाली के लिए लाहौर की ऐतिहासिक यात्रा की, लेकिन इसी वर्ष कारगिल युद्ध ने रिश्तों को फिर से बिगाड़ दिया।
सांस्कृतिक और कूटनीतिक वार्ताएँ:
कई बार ‘ट्रैक-2 डिप्लोमेसी’ (गैर-सरकारी बातचीत) और बस सेवा, क्रिकेट मैच आदि से शांति बहाल करने की कोशिश की गई।
कार्तारपुर कॉरिडोर (2019)
भारत और पाकिस्तान ने मिलकर सिख श्रद्धालुओं के लिए करतारपुर कॉरिडोर खोला। यह एक महत्वपूर्ण शांति प्रयास था, जिससे धार्मिक यात्रियों को वीजा के बिना पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब जाने की अनुमति मिली।
वर्तमान प्रयास:
- सीमित बातचीत (Comprehensive Dialogue Process)।
- आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का कड़ा रुख।
- अंतरराष्ट्रीय दबाव द्वारा बातचीत को प्रोत्साहित करना।
भारत-पाकिस्तान संघर्ष के राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
- राष्ट्रीय सुरक्षा: भारत और पाकिस्तान दोनों ही अपनी-अपनी सीमाओं पर भारी सैन्य बल तैनात करते हैं।
- सामाजिक विभाजन: दोनों देशों की जनता में एक-दूसरे के प्रति असहिष्णुता बढ़ी है।
- आर्थिक विकास पर प्रभाव: सुरक्षा कारणों से रक्षा खर्च बढ़ा, जो विकास के लिए उपयोग हो सकता था।
- क्षेत्रीय राजनीति: यह संघर्ष दक्षिण एशिया में स्थिरता के लिए बड़ा खतरा है और अन्य पड़ोसी देशों को भी प्रभावित करता है।
भविष्य की दिशा और चुनौतियाँ
भारत-पाकिस्तान संघर्ष का समाधान आसान नहीं है क्योंकि इसमें इतिहास, धर्म, राजनीति, और सुरक्षा जैसे कई जटिल मुद्दे शामिल हैं। लेकिन शांति और विकास के लिए निम्नलिखित उपाय जरूरी हैं:
- परस्पर विश्वास बढ़ाना: संवाद और समझ बढ़ाकर द्विपक्षीय रिश्तों को सुधारना।
- आतंकवाद का खत्म होना: दोनों देशों को आतंकवाद का मुकाबला करना होगा।
- अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता: विश्व समुदाय को शांति प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
- आर्थिक सहयोग: व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाकर दोस्ताना माहौल बनाना।
निष्कर्ष
भारत-पाकिस्तान संघर्ष एक जटिल और गहरा मुद्दा है, जो इतिहास, भू-राजनीति, और सांस्कृतिक मतभेदों से जुड़ा हुआ है। इसके समाधान के लिए दोनों देशों को धैर्य, समझ और आपसी सम्मान के साथ संवाद स्थापित करना होगा। दक्षिण एशिया की स्थिरता और विकास के लिए इस विवाद का शांतिपूर्ण समाधान अत्यंत आवश्यक है। यदि शांति स्थापित हो जाती है तो दोनों देशों के लोगों का जीवन बेहतर होगा और पूरे क्षेत्र में समृद्धि और विकास संभव होगा।