द्विध्रुवीयता का अंत || सोवियत प्रणाली ||सोवियत प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ||

द्विध्रुवीयता का अंत || सोवियत प्रणाली ||सोवियत प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ||

सोवियत प्रणाली प्रस्तावना –

सोवियत प्रणाली (Soviet System) बीसवीं शताब्दी की एक अनोखी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संरचना थी, जिसने न केवल रूस बल्कि विश्व इतिहास को भी गहराई से प्रभावित किया। यह प्रणाली 1917 की बोल्शेविक क्रांति के बाद रूस में अस्तित्व में आई और 1991 में सोवियत संघ (USSR) के विघटन तक चली। इस व्यवस्था की आधारशिला समाजवाद और साम्यवाद के सिद्धांतों पर रखी गई थी। सोवियत प्रणाली ने शीत युद्ध, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, वैश्विक शक्ति संतुलन और दुनिया की आर्थिक धारणाओं को नए आयाम दिए।

सोवियत प्रणाली का उदय

1917 में व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में रूस में बोल्शेविक क्रांति हुई, जिसने तानाशाह जार निकोलस द्वितीय की सत्ता समाप्त कर दी। इसके बाद रूस में समाजवादी विचारधारा का उदय हुआ। लेनिन ने मार्क्सवाद को रूस की परिस्थितियों के अनुरूप ढाला और एक नई सोवियत प्रणाली की नींव रखी। 1922 में सोवियत संघ (USSR) की स्थापना हुई, जिसमें रूस सहित कई गणराज्य शामिल हुए।

सोवियत प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ

  1. एकदलीय शासन –

सोवियत संघ में केवल कम्युनिस्ट पार्टी का अस्तित्व था। अन्य राजनीतिक दलों और विपक्ष को मान्यता नहीं दी जाती थी। सत्ता का पूरा नियंत्रण पार्टी के पास था।

  1. राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था –

सोवियत संघ में आर्थिक गतिविधियों पर पूरी तरह से राज्य का नियंत्रण था। उत्पादन, वितरण, कीमतें और वेतन सब कुछ राज्य निर्धारित करता था। निजी उद्योग और व्यापार को सीमित कर दिया गया था।

  1. नियोजित अर्थव्यवस्था (Planning System) –

यहां पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से अर्थव्यवस्था का विकास किया जाता था। लक्ष्य निर्धारित करना, संसाधनों का आवंटन और उत्पादन का मूल्यांकन राज्य द्वारा तय किया जाता था।

  1. सामूहिक कृषि (Collectivization) –

कृषि क्षेत्र में निजी भूमि समाप्त कर दी गई और किसानों को सामूहिक खेती के लिए मजबूर किया गया। यह प्रक्रिया काफी विवादित रही क्योंकि इससे किसानों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

  1. केन्द्रिकृत प्रशासन –

सभी प्रमुख निर्णय मास्को में लिए जाते थे। गणराज्यों को स्वायत्तता सीमित थी, लेकिन वास्तविक सत्ता केन्द्र सरकार के पास थी।

  1. सामाजिक समानता का लक्ष्य –

मुख्य उद्देश्य समाज में आर्थिक और सामाजिक असमानता को समाप्त करना था। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की समान सुविधा प्रदान की जाती थी।

सोवियत प्रणाली की सफलता

  1. तेज औद्योगीकरण –

अल्प समय में सोवियत संघ को एक कृषि प्रधान देश से एक शक्तिशाली औद्योगिक राष्ट्र में बदल दिया।

  1. सामाजिक कल्याण योजनाएँ –

सभी नागरिकों को निःशुल्क शिक्षा, चिकित्सा और सामाजिक सुरक्षा दी जाती थी। बेरोजगारी लगभग समाप्त कर दी गई थी।

  1. महाशक्ति का दर्जा –

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ अमेरिका के साथ विश्व की दूसरी महाशक्ति बनकर उभरा। शीत युद्ध के दौरान इसका वैश्विक प्रभाव बहुत अधिक था।

सोवियत प्रणाली की विफलताएँ

  1. राजनीतिक दमन –

यहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं थी। सरकार का विरोध करने वालों को जेल भेज दिया जाता था या मार दिया जाता था। मीडिया पूरी तरह से राज्य के नियंत्रण में थी।

  1. आर्थिक जड़ता –

राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था में नवाचार और प्रतिस्पर्धा की कमी थी। इससे उत्पादन की गुणवत्ता में गिरावट आई और उपभोक्ता वस्तुओं की कमी हो गई।

  1. भ्रष्टाचार और अक्षमता –

केंद्र सरकार और नौकरशाही में भारी भ्रष्टाचार व्याप्त था। योजनाओं को जमीनी स्तर पर प्रभावी रूप से लागू नहीं किया जा सका।

  1. रूढ़िवादिता और विकास की कमी –

राज्य द्वारा तय योजनाएँ अक्सर वास्तविक आवश्यकताओं से मेल नहीं खाती थीं। योजनाओं में लचीलापन नहीं था, जिससे आर्थिक विकास धीमा पड़ गया।

सोवियत प्रणाली का पतन

1980 के दशक में सोवियत संघ गंभीर आर्थिक संकट का शिकार हो गया। मिखाइल गोर्बाचोव ने ‘ग्लासनोस्त’ (खुलेपन) और ‘पेरेस्त्रोइका’ (पुनर्निर्माण) जैसे सुधार लागू किए, लेकिन यह सुधार समय रहते सफल नहीं हुए। अंततः 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया और 15 स्वतंत्र देश अस्तित्व में आ गए।

सोवियत प्रणाली की विरासत

सोवियत प्रणाली का प्रभाव आज भी विश्व राजनीति में दिखाई देता है। वर्तमान में रूस की राजनीतिक संस्कृति और कुछ आर्थिक ढाँचे सोवियत काल की झलक देते हैं। शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ की प्रतिद्वंद्विता ने वैश्विक कूटनीति, सैन्य गठबंधन और अंतरिक्ष विज्ञान को एक नई दिशा दी।

निष्कर्ष

सोवियत प्रणाली ने एक वैकल्पिक शासन और आर्थिक व्यवस्था को प्रस्तुत किया, जिसने पूंजीवाद को सीधी चुनौती दी। यद्यपि इसमें कई खामियाँ थीं, फिर भी इसने सामाजिक समानता, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त कीं। सोवियत प्रणाली का उदय और पतन यह सिखाता है कि किसी भी व्यवस्था में संतुलन, लचीलापन, और लोकतांत्रिक मूल्यों का होना आवश्यक है|

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