पाकिस्तान और बांग्लादेश में सेना और लोकतंत्र || समकालीन दक्षिण एशिया

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पाकिस्तान और बांग्लादेश में सेना और लोकतंत्र

भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश में लोकतांत्रिक विकास की प्रक्रिया भारत से काफी भिन्न रही है। जहाँ भारत में स्वतंत्रता के बाद से लोकतंत्र मजबूत होता गया, वहीं पाकिस्तान और बांग्लादेश में लोकतंत्र को बार-बार सैन्य हस्तक्षेप का सामना करना पड़ा। इन देशों में सेना ने कई बार सत्ता पर नियंत्रण किया और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया। आइये विस्तार से समझते हैं कि इन दोनों देशों में सेना और लोकतंत्र का क्या संबंध रहा है।

पाकिस्तान में सेना और लोकतंत्र

  1. पाकिस्तान में लोकतंत्र की शुरुआत:

1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान का निर्माण हुआ। पाकिस्तान ने भी भारत की तरह एक संवैधानिक लोकतंत्र स्थापित करने का प्रयास किया। हालांकि, वहां लोकतंत्र जल्दी ही कमजोर पड़ गया। इसके कई कारण थे, जैसे:

  • अस्थिर राजनीतिक दल
  • मजबूत नौकरशाही और सेना
  • कमजोर संविधान
  1. सैन्य हस्तक्षेप की शुरुआत:

1958 में पाकिस्तान में पहली बार सेना ने सत्ता अपने हाथ में ली। जनरल अयूब खान ने सैन्य तख्तापलट कर लोकतांत्रिक सरकार को हटा दिया। इस घटना ने पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास में सेना की सक्रिय भूमिका की शुरुआत कर दी।

  1. पाकिस्तान में सैन्य शासन के चरण:
  • 1958-1969: जनरल अयूब खान का शासन
  • 1969-1971: जनरल याह्या खान का शासन
  • 1977-1988: जनरल जिया-उल-हक का शासन
  • 1999-2008: जनरल परवेज़ मुशर्रफ का शासन

इन सभी सैन्य शासन के समय लोकतांत्रिक संस्थाओं को या तो निलंबित कर दिया गया या नियंत्रित कर दिया गया। मीडिया की स्वतंत्रता भी सीमित कर दी गई थी।

  1. लोकतंत्र की बहाली:

हर सैन्य शासन के बाद, जनता के दबाव और अंतरराष्ट्रीय आलोचना के कारण पाकिस्तान में लोकतांत्रिक चुनाव कराए गए। लेकिन सेना ने कभी भी पूरी तरह से राजनीति से खुद को अलग नहीं किया। सेना ने अपनी मजबूत भूमिका बनाए रखी:

  • विदेश नीति में विशेष रूप से भारत, अमेरिका और अफगानिस्तान के मामलों में सेना का बड़ा प्रभाव रहा।
  • आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद से निपटने के नाम पर सेना का हस्तक्षेप बना रहा।
  1. वर्तमान स्थिति:

हाल के वर्षों में पाकिस्तान में लोकतांत्रिक चुनाव हुए हैं लेकिन सेना का अप्रत्यक्ष प्रभाव अब भी बना हुआ है। सेना के समर्थन के बिना पाकिस्तान में किसी भी सरकार का स्थिर रह पाना कठिन माना जाता है। मीडिया, न्यायपालिका और राजनीतिक दलों पर सेना का दबाव अक्सर चर्चा में रहता है।

बांग्लादेश में सेना और लोकतंत्र

  1. बांग्लादेश का निर्माण:

1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश स्वतंत्र राष्ट्र बना। मुक्ति संग्राम के बाद शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री बने और उन्होंने लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित की।

  1. लोकतंत्र का कमजोर पड़ना:

शेख मुजीब की सरकार को कई राजनीतिक, आर्थिक और प्रशासनिक समस्याओं का सामना करना पड़ा। 1975 में उन्हें सैनिक तख्तापलट में मार दिया गया। इसके बाद सेना का हस्तक्षेप बांग्लादेश की राजनीति में शुरू हो गया।

  1. सैन्य शासन के चरण:
  • 1975-1981: मेजर जनरल जियाउर रहमान का शासन
  • 1982-1990: जनरल हुसैन मोहम्मद इरशाद का शासन

इन सैन्य शासकों ने संविधान में संशोधन किए और अपने शासन को वैध ठहराने का प्रयास किया। हालांकि, लोकतांत्रिक आंदोलनों के कारण अंततः उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी।

  1. लोकतंत्र की बहाली:

1991 में बांग्लादेश में फिर से लोकतांत्रिक चुनाव हुए और वहां लोकतंत्र की वापसी हुई। इसके बाद से बांग्लादेश में सेना की प्रत्यक्ष भूमिका कम हो गई है।

  1. वर्तमान स्थिति:

आज बांग्लादेश में दो प्रमुख राजनीतिक दल हैं:

  • आवामी लीग (शेख हसीना)
  • बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) (खालिदा जिया)

हालांकि सेना ने बांग्लादेश में कुछ समय तक राजनैतिक अस्थिरता के दौरान मध्यस्थता की भूमिका निभाई, लेकिन अब सेना राजनीति में प्रत्यक्ष दखल नहीं देती। हालांकि, सेना का प्रभाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है।

पाकिस्तान और बांग्लादेश की तुलना

पक्ष पाकिस्तान बांग्लादेश
सैन्य तख्तापलट कई बार दो बार
सेना का प्रभाव आज भी मजबूत सीमित और घटता हुआ
लोकतंत्र की स्थिति कमजोर, सेना के प्रभाव में अपेक्षाकृत मजबूत
न्यायपालिका और मीडिया सेना के दबाव में अधिक स्वतंत्र

 

मुख्य बिंदु:

  • पाकिस्तान में सेना का दबदबा शुरू से ही रहा है जबकि बांग्लादेश ने लोकतंत्र को अपेक्षाकृत तेजी से मजबूत किया है।
  • पाकिस्तान की विदेश नीति विशेष रूप से भारत के खिलाफ, सेना के नियंत्रण में रहती है।
  • बांग्लादेश में सेना का नियंत्रण धीरे-धीरे खत्म हुआ और अब वहां लोकतंत्र अपेक्षाकृत स्थिर है।
  • दोनों देशों में लोकतंत्र को अस्थिर करने वाले मुख्य कारक हैं: राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, कमजोर संस्थाएँ और सैन्य महत्वाकांक्षा।
निष्कर्ष:

पाकिस्तान और बांग्लादेश में लोकतंत्र की यात्रा संघर्षपूर्ण रही है, लेकिन दोनों देशों की दिशा अलग-अलग रही है। पाकिस्तान अब भी सेना के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है जबकि बांग्लादेश ने लोकतंत्र को मजबूत करने में बड़ी सफलता हासिल की है। दोनों देशों के अनुभव यह सिखाते हैं कि लोकतंत्र तभी स्थिर और सशक्त हो सकता है जब राजनीतिक संस्थाएं मजबूत हों, सेना की भूमिका सीमित हो और जनता को स्वतंत्रता तथा अधिकार मिले।

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