भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)
भारतीय संविधान में नागरिकों को कुछ ऐसे अधिकार दिए गए हैं जो उनके सर्वांगीण विकास और स्वतंत्रता के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इन्हें मौलिक अधिकार कहा जाता है। मौलिक अधिकार न केवल भारतीय लोकतंत्र की आत्मा हैं, बल्कि यह नागरिकों को राज्य की शक्ति के दुरुपयोग से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं।
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार –
भारतीय संविधान के भाग 3 (Part III) में मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है। मूल रूप से संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44वें संविधान संशोधन (1978) के बाद “सम्पत्ति का अधिकार” (Right to Property) को हटाकर अब 6 मौलिक अधिकार रह गए हैं।
समानता का अधिकार (Right to Equality) – अनुच्छेद 14 से 18
- सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण मिलता है। (Article 14)
- धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर भेदभाव का निषेध है। (Article 15)
- समान अवसर की गारंटी दी जाती है, विशेष रूप से सरकारी नौकरियों में। (Article 16)
- अस्पृश्यता का उन्मूलन और उसके व्यवहार को दंडनीय अपराध घोषित किया गया है। (Article 17)
- उपाधियों (Titles) के अवांछनीय प्रयोग का निषेध किया गया है। (Article 18)
स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom) – अनुच्छेद 19 से 22
- अनुच्छेद 19 के अंतर्गत नागरिकों को 6 प्रकार की स्वतंत्रताएँ दी गई हैं:
- वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- शांतिपूर्ण ढंग से एकत्र होने की स्वतंत्रता
- संघ बनाने की स्वतंत्रता
- भारत में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता
- भारत में कहीं भी निवास करने की स्वतंत्रता
- कोई भी व्यवसाय, व्यापार या पेशा अपनाने की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 20: आपराधिक मामलों में सुरक्षा
- अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
- अनुच्छेद 22: गिरफ्तारी और नजरबंदी से संरक्षण
शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right Against Exploitation) – अनुच्छेद 23 से 24
- अनुच्छेद 23: मानव तस्करी, बेगार और जबरन श्रम का निषेध।
- अनुच्छेद 24: 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से खतरनाक कारखानों या खानों में काम कराना प्रतिबंधित।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion) – अनुच्छेद 25 से 28
- अनुच्छेद 25: सभी को अपने धर्म को मानने, प्रचार करने और अभ्यास करने की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 26: धार्मिक संस्थानों को प्रबंधित करने की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 27: धार्मिक कार्यों के लिए कर न लगाया जाना।
- अनुच्छेद 28: धार्मिक शिक्षा का प्रावधान केवल धार्मिक संस्थानों में ही।
सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (Cultural and Educational Rights) – अनुच्छेद 29 से 30
- अनुच्छेद 29: किसी भी वर्ग, अल्पसंख्यक या समुदाय को अपनी संस्कृति, भाषा और लिपि को सुरक्षित रखने का अधिकार।
- अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यकों को अपनी शैक्षिक संस्थाएं स्थापित करने और प्रबंधित करने का अधिकार।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies) – अनुच्छेद 32
अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 –
- अनुच्छेद 32 – नागरिकों को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार देता है यदि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो।
- अनुच्छेद 226 – उच्च न्यायालय को भी यह शक्ति देता है कि वह मौलिक अधिकारों के साथ-साथ अन्य विधिक अधिकारों के हनन की स्थिति में भी राहत प्रदान कर सके।
उपचार के प्रकार (रिट्स):
संविधान के तहत न्यायालय पाँच प्रकार की रिट्स (writs) जारी कर सकता है:
बंदी प्रत्यक्षीकरण – (हैबियस कॉर्पस Habeas Corpus) –
यदि किसी व्यक्ति को गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया गया है तो यह रिट जारी होती है। इसका अर्थ है – “शरीर को प्रस्तुत करो।”
परमादेश – (मैंडेमस Mandamus): इसका अर्थ है –
“आदेश देना”। यह रिट सरकारी अधिकारियों को उनके कर्तव्यों को पूरा करने के लिए बाध्य करती है।
प्रतिषेध – (प्रोहिबिशन Prohibition) –
यह रिट निचली अदालतों को उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर कार्य करने से रोकती है।
अधिकारपृच्छा – (सर्टियोरारी Certiorari) –
यह रिट निचली अदालतों या ट्रिब्यूनलों से मामलों को उच्च अदालत में स्थानांतरित करने के लिए होती है।
उत्प्रेष्ण – (क्वो वॉरंटो Quo Warranto) –
यह रिट यह जानने के लिए होती है कि कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक पद पर किस अधिकार से बैठा है।
निष्कर्ष
मौलिक अधिकार भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला हैं। ये अधिकार हर नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन जीने, अपने विचार व्यक्त करने, बिना भेदभाव के समाज में आगे बढ़ने और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का अवसर देते हैं।संविधान में इन अधिकारों को शामिल करके भारतीय संविधान निर्माताओं ने यह सुनिश्चित किया है कि हर व्यक्ति स्वतंत्र, समान और सुरक्षित वातावरण में जीवन व्यतीत कर सके।