भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ ||

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ

प्रस्तावना:

भारतीय संविधान विश्व के सबसे विस्तृत और व्यापक संविधान में से एक है। यह संविधान न केवल भारत की शासन प्रणाली का मूल ढांचा प्रदान करता है, बल्कि देश के नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को भी स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है। संविधान की विशेषताएँ इसे अन्य देशों के संविधान से अलग और विशिष्ट बनाती हैं।

लिखित संविधान

भारतीय संविधान एक लिखित दस्तावेज है जिसमें सभी नियम, कानून, सिद्धांत, और प्रक्रियाएँ विस्तार से लिखित रूप में दी गई हैं। यह संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। संविधान सभा ने इसे लगभग 2 साल, 11 महीने, और 18 दिनों में तैयार किया था। इसमें 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 12 अनुसूचियाँ थीं (मूल रूप में), जो समय के साथ संशोधन के द्वारा परिवर्तित होती रही हैं।

विश्व का सबसे लंबा संविधान

भारतीय संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है। इसका विस्तार इसलिए भी है क्योंकि इसमें विभिन्न धर्मों, जातियों, और भाषाओं से युक्त विविधतापूर्ण देश के लिए उपयुक्त प्रावधान किए गए हैं। इसके अलावा, इसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा किया गया है।

संघात्मक ढांचा (Federal Structure)

भारतीय संविधान में एक संघात्मक शासन व्यवस्था का प्रावधान है, जिसमें शक्तियाँ केंद्र और राज्यों के बीच बाँटी गई हैं। हालांकि, भारतीय संघ अमेरिका जैसे देशों की तुलना में अधिक सशक्त केंद्र वाला है, इसलिए इसे ‘संघात्मक व्यवस्था के साथ एकात्मक प्रवृत्ति’ (Quasi-Federal) कहा जाता है।

एकात्मक प्रवृत्तियाँ (Unitary Bias)

आपातकालीन स्थितियों में भारतीय संविधान केंद्र सरकार को अत्यधिक शक्तियाँ प्रदान करता है। ऐसे समय में केंद्र, राज्यों के कार्यों पर भी नियंत्रण स्थापित कर सकता है। इसके अलावा, भारत में एक ही नागरिकता, एक ही संविधान और एक ही न्यायिक प्रणाली है जो इसकी एकात्मक विशेषताओं को दर्शाता है।

लोकतांत्रिक प्रणाली (Democratic System)

भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ शासन जनता के द्वारा, जनता के लिए, और जनता के माध्यम से होता है। भारत में वयस्क मताधिकार लागू है, जिसका अर्थ है कि 18 वर्ष या उससे अधिक आयु का प्रत्येक नागरिक बिना किसी भेदभाव के मतदान कर सकता है।

Bhartiya Samvidhan ki Visheshta

धर्मनिरपेक्षता (Secularism)

भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्ष है, अर्थात राज्य का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। सभी धर्मों को समान सम्मान और संरक्षण दिया जाता है। राज्य धर्म के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता तथा प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म को मानने, प्रचार करने और पालन करने की स्वतंत्रता प्राप्त है।

मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)

भारतीय संविधान नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है जो उनके व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए आवश्यक हैं। इन अधिकारों में जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार तथा संवैधानिक उपचार का अधिकार शामिल हैं। ये अधिकार नागरिकों को राज्य के अन्याय से सुरक्षा प्रदान करते हैं।

मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties)

42वें संविधान संशोधन (1976) के द्वारा मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया। भारतीय नागरिकों के लिए यह आवश्यक है कि वे देश की एकता, अखंडता और संविधान की गरिमा की रक्षा करें। इसके अलावा, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना, पर्यावरण की रक्षा करना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना जैसे कर्तव्यों का पालन करना नागरिकों का दायित्व है।

निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy)

संविधान के भाग 4 में राज्य के नीति निदेशक तत्व दिए गए हैं जो राज्य के लिए सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। यद्यपि ये तत्व न्यायालय द्वारा लागू नहीं कराए जा सकते, परंतु ये शासन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं और एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहायक होते हैं।

Features Of the Indian Constitution

संविधान का लचीलापन और कठोरता (Flexibility and Rigidity)

भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया न तो अत्यधिक कठोर है और न ही अत्यधिक लचीली। इसमें तीन प्रकार की संशोधन प्रक्रियाएँ हैं:

  • साधारण बहुमत से संशोधन
  • विशेष बहुमत से संशोधन
  • विशेष बहुमत + राज्यों की स्वीकृति से संशोधन
    इस मिश्रित प्रकृति के कारण भारतीय संविधान को ‘आंशिक कठोर और आंशिक लचीला’ माना जाता है।

स्वतंत्र न्यायपालिका (Independent Judiciary)

भारतीय न्यायपालिका पूरी तरह स्वतंत्र है। यह न तो कार्यपालिका और न ही विधायिका के नियंत्रण में है। सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालय संविधान के रक्षक माने जाते हैं। न्यायपालिका संविधान के अंतर्गत विधायिका और कार्यपालिका की सीमाओं का निर्धारण करती है।

मूल अधिकारों की न्यायिक रक्षा (Judicial Review)

भारतीय संविधान न्यायिक पुनरीक्षण (Judicial Review) का अधिकार न्यायपालिका को देता है। इसका अर्थ है कि यदि कोई कानून या सरकारी आदेश संविधान के विपरीत है तो न्यायपालिका उसे अमान्य घोषित कर सकती है। यह संविधान की सर्वोच्चता को बनाए रखने का एक सशक्त माध्यम है।

एकल नागरिकता (Single Citizenship)

भारत में केवल एक नागरिकता होती है। चाहे कोई व्यक्ति किसी भी राज्य का निवासी हो, उसकी नागरिकता केवल भारतीय होती है। इससे देश की एकता और अखंडता को बल मिलता है।

संविधान की सर्वोच्चता (Supremacy of the Constitution)

भारतीय संविधान देश का सर्वोच्च कानून है। संसद, राज्य विधानसभाएँ, कार्यपालिका और न्यायपालिका सभी संविधान के अधीन कार्य करते हैं। यदि कोई कानून संविधान के विरुद्ध होता है, तो वह अवैध और अमान्य घोषित किया जा सकता है।

संविधान सभा द्वारा निर्मित

भारतीय संविधान संविधान सभा द्वारा तैयार किया गया था, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों, धर्मों, और भाषाओं के प्रतिनिधि शामिल थे। संविधान सभा ने विचार-विमर्श और बहस के माध्यम से प्रत्येक अनुच्छेद को स्वीकार किया, जिससे संविधान भारतीय समाज की विविधता का सच्चा प्रतिबिंब बन सका।

निष्कर्ष:

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ इसे एक अद्वितीय और आदर्श संविधान बनाती हैं। यह न केवल देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने का कार्य करता है, बल्कि प्रत्येक नागरिक को समान अवसर, स्वतंत्रता, और अधिकार भी प्रदान करता है। इसके लचीलेपन और कठोरता का संतुलन इसे समय के साथ बदलती आवश्यकताओं के अनुसार अद्यतन करने की सुविधा भी देता है।

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