भारत और संयुक्त राष्ट्र में सुधार
संयुक्त राष्ट्र (United Nations – UN)
संयुक्त राष्ट्र (United Nations – UN) की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना, देशों के बीच सहयोग बढ़ाना तथा मानवाधिकारों की रक्षा करना था।
भारत, जो 1945 से ही संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है, लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र के सुधार की मांग कर रहा है। भारत का मानना है कि वर्तमान वैश्विक व्यवस्था 1945 की संरचना पर आधारित है, जो आज की वैश्विक परिस्थितियों के अनुरूप नहीं है।
भारत का संयुक्त राष्ट्र में योगदान
भारत का संयुक्त राष्ट्र में ऐतिहासिक और सक्रिय योगदान रहा है, जो इस प्रकार है:
संस्थापक सदस्य:
भारत, संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य है। यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले प्रारंभिक 51 देशों में शामिल था।
शांति सेना (UN Peacekeeping) में योगदान:
भारत संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सबसे बड़ा सैनिक योगदान देने वाला देश रहा है। भारतीय सेना ने कोरिया, कांगो, सूडान, सोमालिया, लेबनान जैसे देशों में शांति स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
मानवाधिकारों का समर्थन:
भारत हमेशा से मानवाधिकारों की रक्षा और विकासशील देशों के अधिकारों की वकालत करता रहा है।
परमाणु नीतियों में भागीदारी:
भारत ने परमाणु निरस्त्रीकरण और शांति के लिए लगातार काम किया है। भारत ‘परमाणु हथियार मुक्त विश्व’ का पक्षधर है।
संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों में भागीदारी:
भारत संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), UNESCO आदि में भी सक्रिय भूमिका निभाता है।
संयुक्त राष्ट्र में सुधार की आवश्यकता
पुरानी संरचना:
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का वर्तमान ढांचा 1945 की वैश्विक शक्ति-संरचना पर आधारित है। आज वैश्विक शक्ति-संतुलन बदल चुका है, परंतु संयुक्त राष्ट्र की संरचना अभी भी पुरानी बनी हुई है।
प्रतिनिधित्व की कमी:
सुरक्षा परिषद में अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया जैसे बड़े क्षेत्रों का स्थायी प्रतिनिधित्व नहीं है। ये क्षेत्र दुनिया की जनसंख्या और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, फिर भी इनकी आवाज़ सुरक्षा परिषद में नहीं सुनी जाती।
वीटो शक्ति का दुरुपयोग:
संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्य (P-5) — अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन — वीटो शक्ति का बार-बार दुरुपयोग करते हैं, जिससे कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव अवरुद्ध हो जाते हैं।
विश्व जनसंख्या का असंतुलन:
वर्तमान स्थायी सदस्य विश्व की जनसंख्या का बहुत ही छोटा भाग प्रतिनिधित्व करते हैं। भारत जैसे देश, जो जनसंख्या, अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति में अग्रणी हैं, को कोई स्थायी स्थान नहीं मिला है।
भारत की दावेदारी के प्रमुख आधार:
सबसे बड़ा लोकतंत्र:
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है।
जनसंख्या:
भारत की जनसंख्या लगभग 1.4 अरब है, जो विश्व की लगभग 17% जनसंख्या है।
अर्थव्यवस्था:
भारत विश्व की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। यह वैश्विक व्यापार और निवेश में बड़ी भूमिका निभा रहा है।
शांति में योगदान:
भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में निरंतर सैनिक और मानव संसाधन भेजे हैं।
अंतरराष्ट्रीय समर्थन:
भारत को फ्रांस, रूस, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों का समर्थन प्राप्त है। अफ्रीकी और लातिन अमेरिकी देशों ने भी भारत की सदस्यता का समर्थन किया है।
परमाणु शक्ति:
भारत एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति है। यह ‘नो फर्स्ट यूज’ (पहले प्रयोग न करने की नीति) का पालन करता है।
संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिए भारत का दृष्टिकोण
भारत केवल अपने लिए नहीं, बल्कि वैश्विक प्रतिनिधित्व के सुधार की बात करता है। भारत का मानना है:
- सुरक्षा परिषद में विकासशील देशों को स्थान मिले।
- अफ्रीकी देशों को भी स्थायी सदस्यता दी जाए।
- वीटो पद्धति की समीक्षा की जाए।
- सुरक्षा परिषद का आकार बढ़ाया जाए।
भारत ‘G-4’ समूह (भारत, जापान, जर्मनी, ब्राजील) के साथ मिलकर सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है।
सुधारों के विरोध में तर्क
कुछ देशों का विरोध:
पाकिस्तान, इटली, अर्जेंटीना आदि देश भारत, जापान, ब्राजील और जर्मनी की सदस्यता का विरोध करते हैं।
चीन का रुख:
चीन भारत की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का खुला समर्थन नहीं करता, जो भारत की राह में सबसे बड़ी बाधा है।
संयुक्त राष्ट्र में आम सहमति का अभाव:
सुधार के लिए सभी देशों की सहमति आवश्यक है, जो फिलहाल कठिन प्रतीत होता है।
भारत की रणनीति:
कूटनीतिक प्रयास:
भारत वैश्विक मंचों पर अपने पक्ष को मजबूती से रखता है।
बहुपक्षीय सहयोग:
भारत ‘G-4’ और अन्य विकासशील देशों के साथ मिलकर सुधारों की मांग को आगे बढ़ाता है।
अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करना:
भारत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों, सम्मेलनों और द्विपक्षीय वार्ताओं के जरिए समर्थन जुटा रहा है।
निष्कर्ष
भारत का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र तभी प्रभावी रह सकता है जब वह वर्तमान वैश्विक यथार्थ को प्रतिबिंबित करे। सुरक्षा परिषद में भारत जैसे बड़े, लोकतांत्रिक और विकासशील देशों की स्थायी सदस्यता समय की मांग है। यदि संयुक्त राष्ट्र में सुधार नहीं हुए तो उसकी प्रासंगिकता और प्रभावशीलता पर प्रश्न चिन्ह लग सकता है। भारत का प्रयास है कि दुनिया के सभी क्षेत्रों को उचित प्रतिनिधित्व मिले, ताकि संयुक्त राष्ट्र वास्तव में ‘विश्व सरकार’ की तरह कार्य कर सके।