सत्ता के वैकल्पिक केंद्र: यूरोपीय संघ || European Union ||

सत्ता के वैकल्पिक केंद्र: यूरोपीय संघ

European Union Class 12 Political Science in Hindi

यूरोपीय संघ प्रस्तावना:

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक शक्ति संतुलन में व्यापक बदलाव हुए। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद दुनिया बहुध्रुवीय सत्ता संरचना की ओर बढ़ने लगी, जिसमें विभिन्न शक्तिशाली क्षेत्रों का उदय हुआ। यूरोपीय संघ (European Union – EU) ऐसा ही एक शक्तिशाली क्षेत्रीय संगठन है, जो आज के समय में एक महत्वपूर्ण ‘सत्ता के समकालीन केंद्र’ के रूप में स्थापित है। यूरोपीय संघ न केवल आर्थिक बल्कि राजनीतिक, सामरिक और सांस्कृतिक रूप से भी वैश्विक प्रभाव रखता है।

यूरोपीय संघ का उद्भव और विकास:

  1. पृष्ठभूमि:

द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका के बाद यूरोपीय देशों को यह एहसास हुआ कि यदि उन्हें पुनः युद्ध की स्थिति से बचना है और आर्थिक विकास करना है, तो उन्हें एक दूसरे के साथ सहयोग करना होगा। इस सोच के तहत 1951 में यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय (European Coal and Steel Community – ECSC) की स्थापना हुई, जिसमें छह देश शामिल थे: फ्रांस, जर्मनी, इटली, बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग, और नीदरलैंड।

  1. ई.ई.सी. और ई.यू. का निर्माण:

1957 में रोम संधि (Treaty of Rome) के तहत यूरोपीय आर्थिक समुदाय (European Economic Community – EEC) का गठन किया गया। इसका उद्देश्य सदस्य देशों के बीच मुक्त व्यापार, साझा बाजार और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना था। इसके बाद कई चरणों में और देशों ने इस संगठन में सदस्यता ली।

1993 में मास्ट्रिख्ट संधि (Maastricht Treaty) के द्वारा आधिकारिक रूप से यूरोपीय संघ का गठन हुआ। यह संधि केवल आर्थिक संगठन से आगे बढ़कर राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग की नींव थी।

यूरोपीय संघ के प्रमुख संस्थान:

  1. यूरोपीय परिषद (European Council) – सर्वोच्च नीति-निर्धारण संस्था जिसमें सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल होते हैं।
  2. यूरोपीय आयोग (European Commission) – नीति प्रस्तावित करने और उनके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी संभालता है।
  3. यूरोपीय संसद (European Parliament) – लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई संस्था जो विधायिका का कार्य करती है।
  4. यूरोपीय न्यायालय (European Court of Justice) – कानून की व्याख्या और अनुपालन सुनिश्चित करता है।
  5. यूरोपीय केंद्रीय बैंक (European Central Bank – ECB) – यूरो मुद्रा का प्रबंधन करता है और मौद्रिक नीति बनाता है।

यूरोपीय संघ की विशेषताएँ:

  1. एकीकृत बाजार:

यूरोपीय संघ विश्व का सबसे बड़ा एकीकृत बाजार है। सदस्य देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी और व्यक्तियों की स्वतंत्र आवाजाही की अनुमति है। इसने व्यापार में बाधाओं को लगभग समाप्त कर दिया है।

  1. साझा मुद्रा – यूरो:

कई सदस्य देशों ने अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं को छोड़कर यूरो को अपनाया है। यह वैश्विक स्तर पर अमेरिकी डॉलर के बाद सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाली मुद्रा है। इससे आर्थिक एकता और व्यापार में सुविधा बढ़ी है।

  1. विदेश नीति और सुरक्षा सहयोग:

यद्यपि यूरोपीय संघ की विदेश नीति पूर्णत: एकीकृत नहीं है, लेकिन यह विभिन्न वैश्विक मुद्दों जैसे जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकार और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में एक सशक्त स्वर उठाता है।

  1. मानवाधिकार और लोकतंत्र:

यूरोपीय संघ मानवाधिकारों के संरक्षण और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध है। सदस्य देशों को यूरोपीय मानवाधिकार चार्टर का पालन करना अनिवार्य है।

  1. सामाजिक और पर्यावरणीय नीतियाँ:

ईयू सामाजिक कल्याण, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्रों में भी सक्रिय रूप से नीतियाँ बनाता है और लागू करता है।

यूरोपीय संघ की उपलब्धियाँ:

  1. लंबे समय से क्षेत्रीय शांति:
    यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच शांति बनी हुई है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह क्षेत्र निरंतर शांति और स्थिरता का केंद्र रहा है।
  2. आर्थिक शक्ति:
    ईयू विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसके सदस्य देशों का सम्मिलित GDP विश्व अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
  3. वैश्विक राजनीति में प्रभाव:
    ईयू विश्व व्यापार संगठन, संयुक्त राष्ट्र, G7, G20 जैसे वैश्विक मंचों पर प्रभावी भूमिका निभाता है।
  4. यूरोप में यात्रा की स्वतंत्रता:
    ‘शेंगेन समझौते’ (Schengen Agreement) के तहत यूरोपीय संघ के नागरिक बिना वीज़ा के एक देश से दूसरे देश में यात्रा कर सकते हैं।
यूरोपीय संघ की चुनौतियाँ:
  1. ब्रेक्सिट:
    ब्रिटेन द्वारा ईयू से बाहर निकलना (ब्रेक्सिट) यूरोपीय संघ के इतिहास में एक बड़ा झटका था। इससे संगठन की एकता और भविष्य पर सवाल उठे।
  2. असमान आर्थिक विकास:
    सदस्य देशों के बीच आर्थिक विकास में असमानता है। पश्चिमी यूरोप के देश अपेक्षाकृत समृद्ध हैं जबकि पूर्वी यूरोप के देश विकासशील स्थिति में हैं।
  3. आव्रजन संकट:
    यूरोपीय संघ ने शरणार्थियों और प्रवासियों के मुद्दे का सामना किया है, जिससे सामाजिक और राजनीतिक तनाव पैदा हुए हैं।
  4. रूस-यूक्रेन संघर्ष:
    इस संघर्ष ने यूरोपीय संघ के सुरक्षा ढांचे और ऊर्जा आपूर्ति को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। ईयू को रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने पड़े, लेकिन इससे उनकी अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं भी संकट में आ गईं।
  5. सांस्कृतिक विविधता और राजनीतिक मतभेद:
    अलग-अलग देशों की सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताएँ कई बार नीति-निर्माण में कठिनाई उत्पन्न करती हैं।
निष्कर्ष:

यूरोपीय संघ आज के युग में सत्ता का एक प्रमुख समकालीन केंद्र है, जिसने आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। यह न केवल अपने सदस्यों के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ है, बल्कि विश्व मंच पर भी संतुलन, मानवाधिकार, पर्यावरण और वैश्विक शांति के लिए सक्रिय भूमिका निभाता है।

हालाँकि, यूरोपीय संघ को ब्रेक्सिट, आव्रजन संकट, आर्थिक विषमता और सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से निरंतर जूझना पड़ रहा है। यदि यह संगठन इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर लेता है, तो भविष्य में भी यह वैश्विक सत्ता के प्रमुख केंद्रों में अपनी जगह बनाए रखेगा।

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